By- Raman Kant
खाद्य सुरक्षा भारत के
लिए एक बड़ा चिंता का विषय रहा है। इस साल आई वल्ड हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट ने तो इस
चिंता को और गहरा दिया है। रिपोर्ट में शामिल
111 देशों में भारत 27.5 के स्कोर के साथ 101वीं रेंकिंग पर रहा। इस रेंकिंग के अनुसार भारत अपने पड़ोसी देशों, पाकिस्तान,
बांग्लादेश, नेपाल, भूटान से भी पीछे है। वल्ड हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट को देखने पर
पता चलता है कि वर्ष 2000 के बाद भारत की रेंकिंग गिरती चली गई है। वर्ष 2000 के बाद
भारत की रेंकिंग में अब तक -29.1 प्रतिशत का चेंज आया है।
पश्चिमी हिमालय क्षेत्र
में बसा हिमाचल प्रदेश भी इससे बचा नहीं है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019 के अनुसार
हिमाचल में 15 से 49 आयु की 59.8 प्रतिशत महिलाएं अनीमिया ग्रस्त हैं, 5 साल से कम आयु के 27 प्रतिशत बच्चे अल्प विकसित
हैं और 26.6 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं। ऐसे में प्रदेश की माताओं, बहनों और बच्चों
के स्वास्थ्य को बेहतर करने की जरूरत है जिसे रसायनमुक्त और पोषणयुक्त खाद्य पदार्थों
की उपलब्धता से ही सुनिश्चित किया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश
में अब प्राकृतिक तरीके से बिना खाद-कीटनाशक के उगाए जाने वाली फल, सब्जी और अनाज सहित
डेयरी उत्पादों को बाजार मुहैया करवाने के लिए एकीकृत सतत खाद्य प्रणाली बनाई जा रही
है। खाद, कीट-खरपतवार नाशकों और केमिकल ग्रोथ रेगुलेटर के बिना पैदा की जा रही इन चीजों
को अब सतत खाद्य प्रणाली के अधीन लाकर बाजार में बेचा जाएगा। इसके लिए प्रदेश में चल
रही प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना की राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई ने एक खाका
तैयार किया है।
खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र
में कार्य कर रही प्रमुख संस्थाओं संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन, आइफोम- आर्गेनिक, राष्ट्रीय
खाद्य एवं पर्यावरण संस्थान फ्रांस के साथ विश्वभर के विशेषज्ञों के सहयोग से तैयार
की जा रही इस सतत खाद्य प्रणाली में के तहत किसान-बागवानों के खेतों में उगाए जा रहे
उत्पाद को किसान के खेत से उपभोक्ता की प्लेट तक पहुंचाने के लिए एक पारदर्शी सिस्टम
को तैयार किया जा रहा है। इन उत्पादों को इकट्ठा कर एक ब्रांड बनाकर बाजार मुहैया करवाने
पर जोर दिया जाएगा।
पारदर्शिता के सिद्धांत
पर आधारित इस खाद्य प्रणाली से जहां किसान को यह जानकारी रहेगी कि उसका उत्पाद बाजार
में कितने दाम पर बेचा जा रहा है, वहीं उपभोक्ता भी यह ट्रेस कर सकेगा कि जो उत्पाद
उसने खरीदा है वह किस किसान के पास से आया है। इस प्रणाली के तहत सबसे पहले प्रदेश
की खाद्य जरूरतों को पूरा किया जाएगा उसके बाद बाहरी राज्यों में यह उत्पाद भेजे जाएंगे।
सतत
प्रणाली के क्या होंगे फायदे
इस प्रणाली के आने से हिमाचल में खाद्य
सुरक्षा को बल मिलेगा। रसायनरहित भोजन से प्रदेशवासियों का स्वास्थ्य बेहतर होगा। इस
प्रणाली में विविध तरह के खाद्य पदार्थ स्थानीय तौर पर उपलब्ध होंगे जिससे प्रदेश के
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के बाशिंदों के पोषण संबंधी विकारों में कमी आएगी।
इस प्रणाली के बनने से किसान समुदाय विशेषकर छोटे और मझौले किसानों को फायदा होगा।
चूंकि इन किसानों का उत्पाद ज्यादा नहीं होता इसलिए इन्हें फसलों के औने-पौने दाम मिलते
हैं। यह प्रणाली इन किसानों को सशक्त करेगी और उन्हें सही मूल्य सुनिश्चित करेगी। ओपन
सिस्टम डेटाबेस होने के चलते उपभोक्ता एवं किसान के पारस्परिक संबंध भी मजबूत होंगे
जिसके फलस्वरूप किसानों को ओपन मार्केट भी मिलेगी। इस प्रणाली में हिमाचल के चारों
जलवायु क्षेत्रों में पैदा होने वाले अनाजों, सब्जियों और फलों
का पहले सर्वे किया जाएगा। इसके बाद एक जिले या एक स्थान में उगने वाली फल सब्जियों
और अनाजों को दूसरे जिले में जरूरत के हिसाब से बेचने की व्यवस्था को तैयार किया जाएगा।
इसी प्रणाली के तहत राज्य सरकार यहां के किसानों को प्रोत्साहन देकर बाहरी राज्यों
से होने वाले खाद्यान्न के आयात को भी कम कर पाएगी।
खाद्य
उत्पादों की बिक्री की क्या है मौजूदा व्यवस्था
वर्तमान समय में विविध
खाद्य उत्पादों की बिक्री के लिए कोई सिस्टेमेटिक व्यवस्था नहीं है। किसान मंडी और
खुले बाजार में अपने स्तर पर उत्पाद बेचते हैं। सभी तरह की कृषि तकनीकों (रसायनिक,
जैविक और प्राकृतिक) से तैयार उत्पादों को बाजार में लगभग एक ही दाम मिल रहा है। न
तो इन उत्पादों में अंतर स्पष्ट हो पा रहा है न ही बड़ा बाजार उपलब्ध हो पा रहा है।
ऐसे में प्रदेश सरकार प्राकृतिक तरीके से तैयार सभी उपभोग योग्य उत्पादों को एक ही
छत के नीचे लाने के लिए एक व्यवस्था बनाने की ओर कदम बढ़ाए हैं। इस एकीकृत सतत खाद्य
प्रणाली के आने से जहां किसानों का दीर्घकालिक कल्याण सुनिश्चित होगा वहीं प्रदेश में
खाद्य सुरक्षा को संबल मिलेगा। इस खाद्य प्रणाली के तहत सरप्लस उत्पाद को किसान संघों
के जरिए बेचा जाएगा। इन संघों का कामकाज स्थानीय किसान ही देखेंगे। प्रदेश के अंदर
बनने वाले किसान उत्पाद संघों और कंपनियों को राज्य स्तर पर एक कंसोर्टियम ऑफ एफपीसी
बनाकर मैनेज किया जाएगा।
एकीकृत
सतत खाद्य प्रणाली पर काम करने के लिए कई संस्थाएं तैयार
हिमाचल की इस एकीकृत
सतत खाद्य प्रणाली को आगे बढ़ाने और सरकार के साथ काम करने के लिए कई संस्थाएं आगे
आ रही हैं। हाल ही में इस खाद्य प्रणाली के मसौदे राज्य के कृषि विभाग और जीआईजैड इंडिया
एवं केएफडबल्यू डेवलपमेंट बैंक के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। इस बैठक में जीआईजैड
इंडिया के नेशनल रिसोर्स मैनेजमेंट और एग्रोइकोलॉजी के निदेशक राजीव अहल ने इस प्रणाली
की सराहना की और इसे बेहतर बनाने के लिए अपने सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि यह अपनी तरह
की अनूठी पहल है जो देश के अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बनेगी। केएफडबल्यू डेवलपमेंट
बैंक की सीनियर सेक्टर स्पेशलिस्ट संगीता अग्रवाल ने भी इस प्रणाली के गठन के लिए सहयोग
करने का विश्वास दिलाया। उन्होंने इस प्रणाली से किसानों को जोड़ने तथा उन्हें दिए
जाने वाले प्रोत्साहन को लेकर अपने सुझाव अधिकारियों के सामने रखे।
क्या
हैं प्रमुख चुनौतियां
एकीकृत सतत खाद्य प्रणाली
को लेकर सबसे पहली चुनौती इस प्रणाली के तहत काम करने वाले विभागों- कृषि, बागवानी,
मतस्यपालन, पशुपालन, वन एवं ग्रामीण विकास के बीच समन्वय स्थापित करना होगा। इसके साथ
ही किसानों, पशुपालकों, डेयरी मालिकों, मांस विक्रेताओं को इस प्रणाली से जोड़ने एवं
विश्वास कायम करना एक प्रमुख चुनौती रहेगी। होगा। प्रणाली से जुड़े विभिन्न स्टेकहोल्डर
को साथ लेकर चलना और मसौदे के तहत तैयार किए गए रोडमैप के हिसाब से चरणबद्ध तरीके से
काम करते हुए प्रणाली को आगे बढ़ाना, समय-समय पर निगरानी रखना एवं सही भोज्य पदार्थ
उपभोक्ता तक पहुंचाना भी आसान नहीं रहेगा।
कब
तक लागू होगी यह प्रणाली
इस प्रणाली को एक साल
के भीतर लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। एकीकृत सतत खाद्य प्रणाली को तैयार कर रही
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रो राजेश्वर सिंह चंदेल ने
बताया कि इस फूड सिस्टम में पारदर्शिता और भरोसे को कायम रखने पर पूरा ध्यान दिया गया
है। नव तकनीक के इंटीग्रेशन से किसानों का डेटाबेस शेयर किया जाएगा। एक एप भी बनाई
जाएगी जो भौगोलिकता के हिसाब से अलग-अगल उत्पाद की मात्रा को रियल टाइम पर दर्शाएगी। उन्होंने बताया कि संस्थाओं, एफएओ, इनरा फ्रांस, आईफोम,
बायोविजन, जीआईजेड, और एक्सेस
लाइवलिहुड के विशेषज्ञों के साथ कई दौर की वार्ता करने के बाद खाद्य प्रणाली का मसौदा
तैयार किया गया है और इसे सैद्धांतिक मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा जा रहा है ताकि
अन्य विभागो के साथ समन्वय स्थापित कर जल्दी से काम शुरू किया जा सके।
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