सरकारी जमीन से बेदखली रोकेगी भाजपा, "जमीन बचाओ, मकान बचाओ" कमेटी बनाई
प्रदेश में सरकारी भूमि को नियमित करने के कब्जे की नीति पूर्व भाजपा सरकार के समय 2002 में बनाई गई थी। इसके लिए प्रदेश में करीब 1.65 लाख किसानों ने आवेदन किए थे, लेकिन अब इन्ही किसानों को बेदखली का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर इस मामले में ढिलाई बरतने के आरोप लगाए हैं। भाजपा ने इसको लेकर "जमीन बचाओ, मकान बचाओ" कमेटी बनाने का ऐलान किया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल द्वारा गठित इस कमेटी में संयोजक भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं विधायक त्रिलोक जमवाल, सदस्य सचिव प्रदेश उपाध्यक्ष बिहारी लाल शर्मा, सदस्य विधायक सुधीर शर्मा, मुख्य प्रवक्ता राकेश जमवाल एवं प्रदेश उपाध्यक्ष बलबीर वर्मा होंगे।
डॉ. राजीव बिंदल ने कहा है कि भाजपा ने संकल्प लिया है कि इस लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक ले जाया जाएगा।
कमेटी के सदस्य एवं विधायक सुधीर शर्मा ने कहा कि कांग्रेस सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण पीढ़ियों से सरकार द्वारा दी गई भूमि पर रह किसान व मजदूर बेघर होने की कगार पर हैं। भाजपा इनकी लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक ले जाने का फैसला लिया है ताकि भूमिहीनों को फिर से भूमिहीन न होना पड़े, हमारी लड़ाई केवल वंचित वर्ग के लिए है।
हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम, 1954 की धारा 163, सामान्य भूमि पर किए गए अतिक्रमणों को रोकने और हटाने से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी सामान्य भूमि पर अतिक्रमण करता है, तो राजस्व अधिकारी स्वयं या किसी अन्य सह-मालिक के आवेदन पर अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति को भूमि से बेदखल कर सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम में एक धारा 163-ए भी थी, जो सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमणों को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को देती थी। हालांकि, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने 5 अगस्त 2025 को इस धारा को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। सितंबर 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है, जिससे भूमि पर बेदखली के खतरे का सामना कर रहे किसानों को कुछ राहत मिली है।
कब्जे नियमित करने को 1.65 लाख ने किया था आवेदन
उल्लेखनीय है कि हिमाचल में भूमि नियमितीकरण नीति के लिए 1.65 लाख लोगों ने आवेदन किया था। याचिकाकर्ता पूनम गुप्ता की ओर से नीति की वैधता भूमि को चुनौती दी गई थी। हिमाचल में 5 बीघा भूमि नियमितीकरण वाली नीति 2002 बनाई गई थी। नीति के तहत सरकारी पर अतिक्रमण करने वालों लोगों से तत्कालीन राज्य सरकार ने आवेदन मांगे थे। इसके तहत भूमि को नियमितीकरण करने के लिए 1.65 लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया था। पूर्व भाजपा सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में संशोधन कर धारा 163-ए को जोड़ा, जिसके तहत लोगों को 5 से 20 बीघा तक जमीन देने और नियमितीकरण करने का फैसला लिया गया था। अगस्त 2002 में हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने प्रक्रिया जारी रखने के आदेश दिए थे, जबकि पट्टा देने से मना कर दिया था।
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