सब्सिडी खत्म करने से खाद, दवाइयों की कीमतें दुगनी बढ़ी
कांग्रेस ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि वह हिमाचल के सेब बागवानों की अनदेखी कर रही है। शिमला में एक प्रैस कांफ्रेंस में कांग्रेस के उपाध्यक्ष नरेश चौहान ने कहा कि सरकार का बीते पांच सालों से सेब बागवानों के प्रति रवैया निराशाजनक बना हुआ हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर भी आरोप लगाया कि वे जानबूझ कर सेब बागवानों की अनदेखी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह का बागवानों के प्रति रवैया बना हुआ है, वह दुर्भगायपूर्ण है।
नरेश चौहान ने कहा कि हिमाचल में करीब 1.75 लाख परिवार सीधे तौर पर सेब उत्पादन से जुड़े हुए है और करीब 9 नौ लाख लोग सीधे इससे रोजगार प्राप्त कर रहे है। इसके अलावा अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोग इससे जुड़े हुए हैं। मगर सरकार की नीति से हिमाचल की एप्पल इंडस्ट्री पर संकट खड़ा हो गया है
नरेश चौहान ने कहा कि दो से तीन सालों में सेब में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों और खाद को कीमतों में दुगनी वृद्धि हो गई है। वहीं पैकिंग मेटीरियल, ट्रांसपोर्टेशन की लागत भी काफी बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि 12:32:16 खाद का बैग तीन साल पहले 800 रुपए में था जो कि आज 1700 रुपए हो गया है। इसी तरह 15:15:15 खाद का एक बैग भी 800 रुपए से 1500 हो गया है। इसी तरह एक अन्य खाद भी 850 रुपए से 1750 रुपए हो गया है। सेब को स्कैब, माइट जैसी कई बीमारियों से बचने के लिए दवाइयों, ट्री ऑयल की स्प्रे करनी पड़ती है। हर बार करीब 20 से 25 स्प्रे बागवान सेब की फसल पर करते हैं। लेकिन इनकी कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। इसकी एक वजह यह है कि अहले 2020 तक इन पर सब्सिडी दी जाती थी, मगर जयराम सरकार ने यह खत्म कर दी है। इसी तरह केंद्र की मोदी सरकार ने 18.50 फीसदी जीएसटी कार्टन और दवाइयों पर लगा दिया है। इससे बागवानों की लागत बढ़ी है जबकि कमाई लगातार कम हो रही है। सेब की पैकिंग में इस्तेमाल में होने वाले कार्टन और ट्रे की कीमतों में भी काफी इजाफा किया गया है। पहले सरकार सरकार कार्टन के लिए इनकी कंपनियों से टेंडर मांगती थी, इससे कार्टन की कीमतें कम रहती थी। लेनिन सरकार ने कार्टन के लिए टेंडर नही किए। इसका नतीजा है कि पिछले बार जहां एक कार्टन 55 से 60 रुपए मिलता था, लेकिन इस साल कार्टन 70 से 80 रुपए में बागवान खरीदने को मजबूर है। इसी तरह सेब कार्टन की एक ट्रे पिछली साल 5 रुपए में मिल रही थी, लेकिन इस साल यह 8 रुपए में मिल रही है। इसी तरह सेब की पेटियों के ट्रांसपोर्टेशन रेट भी कई गुना बढ़ गए है। उन्होंने कहा कि सेब में इस्तेमाल होने वाली चीजों पर सरकार कोई नियंत्रण नहीं कर रही ।
उन्होंने कहा कि सरकार एमआईएस का सेब जो एचपीएमसी और हिमफेड के मध्यम से खरीदा था, उसका भी भुगतान समय पर नहीं किया जा रहा। हालात यह कि अभी तक 40 करोड़ का बकाया बागवानों का पेंडिंग पड़ा हुआ है। इसी तरह एंटी हेल नेट की सब्सिडी भी तीन तीन साल से नहीं मिली है।
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